नज़रअंदाज

 नज़रअंदाज 

कोरोना संक्रमण ने भले ही लाख परेशानी खड़ी की हो लेकिन वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गो के लिए ख़ुशी का अवसर ले आया रवि के घर में लॉक डाउन  के बाद चहल पहल बढ़ गयी थी ऊपर छोटे भाई का परिवार और नीचे उसका  परिवार। रसोई तो दोनों की अलग अलग थी मगर लॉक डाउन की मज़बूरी`राशन सब्जी स्टॉक नहीं कर पाए तो एक दूसरे के यहाँ से मांग के काम चल रहा था थे तो भाई,भाई मगर कोरोना के पहले तक पिछले कुछ  साल से अजनबी की तरह रह रहे थे इतवार के दिन रवि की पत्नी रीना बोली क्यों न शाम को सब का खाना अपने यहाँ बना ले रवि बोला हा ठीक है 9 बजे के आस पास का समय रख लो रीना ने अपनी देवरानी स्मिता को आवाज़ दी सिम्मी शाम को क्या बना लू भैया बच्चो के साथ ऊपर ही खाना है सिम्मी बोली दीदी छोले भठूरे बना लो में भुट्टे का किस और हलवा बना लूंगी । रात 9  बजे एक अरसे के बाद आज परिवार इक्क्ठा हुआ था.खाना लगा हुआ था टीवी पर रामायण आ रही थी बच्चे टीवी को नज़रअंदाज कर रहे थे और मोबाइल फ़ोन में बिजी थे 

रवि ने बच्चो को चिल्ला के बोला थोड़ा रामायण देख लो कुछ संस्कार मिलेंगे बड़ो की इज्जत करना सीखो बड़े बच्चे तो चुप हो गए मगर छोटा मीनू  बोल पड़ा हा  आप लोगो ने ही तो दादी को भगा दिया सब लोग सन्न-----. सब के दिमाग में यादे ताज़ा होने लगी  इतवार का ही दिन था किटी पार्टी थी और मेनू भी आज जैसा ही था खाना बनाने में 2 बज गए थे माँ जी को भूख लगी थी डाइबिटीज  होने के कारन घबराहट हो रही थी सोचा खुद ही ले लू  हाथ ,हाथ कापने के कारण भगोना गिर गया और दोनों बहुओं  ने बेइज्जती की शाम को पुरे परिवार की तू तू में में। पति की मौत के बाद बेटा बहु बोझ समझने लगे थे कोई बात नहीं करता था बहुए समय पर खाना नहीं देती थी पोते पोतिया अपने में मगन रहती थी और ये घटना, माँ जी को नज़रअंदाज होना रास नहीं आया सुबह होते ही माँ जी घर छोड़ गयी लगा के एक दो दिन में वापस आ जाएँगी मगर पता ना  चला और उस के बाद उन लोगो ने पता करने की कोशिश भी न की 

आज एक बच्चे की बात ने सब को झकझोर दिया था माँ को ढूंढे कैसे हे के नहीं। काफी दिमाग में जोर देने के बाद याद आया के एक बार माँ ने भोपाल वृद्धाश्रम से फ़ोन किया था तब पता चला वे भोपाल में है  पोते पोतियो के काफी मानाने के बाद वापस घर  लोटी अब वे अपनों के साथ खुश हे

लॉक डाउन  के अकेलेपन ने बुजुर्गो की अहमियत  बता दी और इस बात का भी अहसास करा दिया संस्कार कोई घुट्टी नहीं हे जो पिला दी ये तो संयुक्त परिवार में बुजुर्गो के संरक्षण  में अपने आप आ जाते है 

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चित्र - पिक्स्बे से साभार 



24 टिप्पणियाँ

आपके सुझाव एवम् प्रतिक्रिया का स्वागत है

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 28-08-2020) को "बाँच ली मैंने व्यथा की बिन लिखी पाती नयन में !"
    (चर्चा अंक-3807)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

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  2. बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन
    सही कहा लॉकडाउन में कई जगह ऐसे ही कुछ अच्छा भी हुआ...

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  3. सही कहा लॉकडाउन में कुछ बिछड़े तो कुछ मले। रिश्तों को लेकर बहुत ही सुंदर ताना बाना गूंथती लघुकथा।
    सादर

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. बेहद हृदयस्पर्शी लघुकथा 👌

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  6. लॉकडाउन में काफी कुछ दिया है और काफी कुछ लोगों ने खोया है पर आप की कहानी दिल को छू गई

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. हृदयस्पर्शी सृजन,कोरोनाकाल ने एक बार फिर से रिश्तों को समझने और उसकी अहमियत को जानने का अवसर भी दिया है,सादर नमस्कार आप को

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  9. दिल को स्पर्श करने वाली पोस्ट,सच जब बुजुर्गों के साथ ऐसा व्यवहार होता है तब बहुत दुख होता है ।आदरणीय प्रणाम ।

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  10. चाहे किसी भी वजह से पर दिल बदल जाये और सुखी हो सके कोई ... इससे अच्छा क्या है ...
    हृदयस्पर्शी कहानी ...

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  11. बुजुर्गों का सम्मान आज का ज्वलंत विषय है, प्रस्तुतिकरण हेतु बधाई

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