स्वार्थी

स्वार्थी

बड़ी मुश्किल से पाल पोस के गज्जू को बड़ा करा था अकेली माँ  ने,  गज्जू वैसे तो माँ का काफी आज्ञाकारी बेटा था लेकिन पत्नी  के सामने आते ही वह  गिरगिट  जैसे रंग बदल लेता बेमतलब  ही वह माँ से झगड़ा कर उसके काम में कमी  निकलता, बदतमीजी से बोलते हुए पत्नी के चहरे पर आयी  मुस्कान  में संतुष्टि देखता कमरे में जा के कहता सठिया गई है मां ,कुछ दिन निकाल लो सन्तो की आंखो में गृहस्थी के सुन्दर सपने  घूमने लगते।

पत्नी की अनुपस्थित में जब माँ आँखों में आँसू लिए शिकायत करती तो वो प्रेम से माँ  की गोदी में सर रख कर कहता माँ  मेरी ख़ुशी के लिए थोड़ा  सहन कर लिया कर तुम  से इस टोन में बात करने से सन्तो जरा खुश हो जाती  है  बस तुम को तो पता ही हे वह कैसी बदमिजाज  हे जरा  काबू में कर  लू फिर तुम  को शिकायत का मौका नहीं मिलेगा और माँ फिर पोता आएगा तो तेरी गोदी में ही तो खेलेगा और गज्जू माँ से हज़ार पांच सो रुपए ले लेता. 

बेटा पत्नी से ज्यादा मुझे अपना समझता हे माँ के आँसुओ के पीछे उसका सतरंगी संसार खिल उठता । पता ही नही चलता स्वार्थी कौन है.

lady
चित्र - पिक्स बे के सौजन्य से 

16 टिप्पणियाँ

आपके सुझाव एवम् प्रतिक्रिया का स्वागत है

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-08-2020) को    "हिन्दी में भावहीन अंग्रेजी शब्द"  (चर्चा अंक-3798)     पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
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  2. बहुत सुन्दर सटीक लघुकथा...
    सच में बेटा बहू और माँ में स्वार्थी कौन..

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  3. हृदयस्पर्शी सृजन,बहुत कुछ कह गई ये लघु कथा , सादर नमन

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  4. भावनाओं से खेल कर कैसे लोग अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं और सामने वाला भावात्मक ठगी का शिकार होता जाता है ।
    बहुत सुंदर लघुकथा।
    सार्थक सृजन।

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  5. सटीक कहानी ... कितने मुखौटे हैं किसके चेहरे पर है ... ये जन जाना आसान नहीं ...

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