श्राद्ध
घर में चर्चा चल रही थी के इस बार कौवा कहा मिलेगा श्राद्ध जो शुरू होने वाले थे गांव में तो फिर भी ठीक है मगर शहर में कौवा मुश्किल से मिलता है गाय, कुत्ते,कौवे इन को भी खीर पूरी मिलने वाले दिन आने वाले थे अगले दिन से श्राद्ध पक्ष प्रारंभ हो रहें थे सप्तमी को घर में माताजी का श्राद्ध था तिथि के हिसाब चार दिन पहले से पंडित जी को न्योता दे दिया था क्यों के इस समय पंडितो का भी कमाई का समय होता है एक दिन पहले सुबह जब याद दिलाने के लिए पंडित जी को फ़ोन किया तो वे कहने लगे यजमान सप्तमी को तो 3 घर से न्योता है और काम पर भी जाना है मुझे तो बिलकुल समय नहीं हे पहले वहा जा कर ऑफिस चला जाऊंगा आप के यहाँ तो शाम को ही आ पाउँगा क्या करते आज कल पंडित मिलते कहा हे सो मानना पड़ा थोड़ी देर बाद मोबाइल फोन की घंटी बज उठी पंडित जी फ़ोन पर बोले दक्षिणा में कपड़ो के अलावा 1001 ₹ देने होंगे अन्यथा ना लीजिए, साथ ही उन्होंने सामग्री और भोजन की लिस्ट व्हाट्सअप कर दी हम सभी सोच रहें थे के पंडित जी है या कोई वीआइपी जिनका सत्कार करना था सोच में पड़ गए क्या करे श्राद्ध का खाना तो सुबह ही खिलाना चाहते थे क्यों के परम्परा के हिसाब जब तक श्राद्ध निकाल कर पंडित जी को ना खिला दे घर में कोई नहीं खा सकता है , उड़द की दाल के बड़े, मिठाई, चावल की खीर, भिंडी की सब्जी पूरी,आलू की रसीली सब्जी और रायते की खुशबु घर में महक रही थी सुबह 11 बजे पंडित जी का फ़ोन आया के वो नहीं आ पाएंगे शायद उन को कही और ज्यादा बड़ी दक्षिणा का जुगाड़ हो गया था अब क्या करे कहा से पंडित को लाये इस सोच विचार में 1 बज गया हमेशा शांत रहने वाले बाबूजी गुस्सा कर रहें थे तुम्हारी माँ की कोई इच्छा अधूरी नहीं छोड़ी और ये पंडित------
इस बीच एक मरियल सी आवाज़ ने हमारा ध्यान भंग किया देखा द्वार पर एक बूढ़ा आदमी बेसुध पड़ा हे और बुद बुदा रहा हे कई दिनों से भूखा हूँ कुछ खाने को दे दो उस को उस के बेटो ने घर से निकल दिया था बड़ी दया आ रही थी मगर सब बाबूजी के डर से चुप थे श्राद्ध का पूजन बचा हुआ था सहसा बाबूजी बोले शास्त्री जी को व्हॉट्स ऐप कॉल करो बाबूजी के परम मित्र शास्त्री जी ने फ़ोन पर ही कर्मकांड पूरा किया और इधर उस बुजुर्ग आदमी को घर के आँगन में बैठा कर प्रेमपूर्वक भोजन कराया 1001 ₹ और कपडे दिए वह तृप्त आत्मा से आशीर्वाद देता हुआ चला गया उस दिन लगा माताजी का सही तरीके से श्राद्ध सम्पन हुआ हे blogger
चित्र -गूगल के साभार से |
वाह! अर्पण और तर्पण का तो यही पवित्रतम स्वरूप है। प्रेरक लघुकथा। आभार और बधाई!!!
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय विश्वनोहन जी सदर
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंश्रद्धा ही तो श्राद्ध का, होता है आधार।
आभार आदरणीय शास्त्री सर
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-09-2020) को "शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3815) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आभार आदरणीय
हटाएंबहुत सुंदर लघुकथा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी सादर
हटाएंबहुत सुन्दर सीख देती प्रेरक लघुकथा
जवाब देंहटाएंसही रूप में श्राद्ध यही है किसी भूखे को भोजन और जरूरत मंद को दक्षिणा
लाजवाब सृजन।
सादर आभार आदरणीया सुधा जी
हटाएंबहुत सुंदर सीख देती प्रेरक लघुकथा।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया अनुराधा जी
हटाएंसुन्दर सीखप्रद प्रेरणादायक सृजन ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया मीना जी
हटाएंgood rakesh jii new blogger
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई
हटाएंभावपूर्ण और शिक्षाप्रद लेखन। बधाई राकेश जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सिद्धार्थ भाई
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण लघु कथा ।आदरणीय प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया मधुलिका जी सादर
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