मायका![]() |
ससुराल से बहुत दिन बाद मायके गई थी, वो मां ने पूछा कभी याद करती है तू मुझे उसने मुस्कुराकर कहा हां, कब याद करती है बता तो जरा मां ने दुबारा पूछा तब जब पहली बार रसोई में गईं थीं रस्म पूरी, करने तब तब भी उनींदी सुबह में पहले उठने का दायित्व निभाती हूं जब साड़ी पहनती हूं और कोशिश के बाद भी प्लेट पूरी नहीं बनती है जब सुबह की चाय खुद बनाकर पीती हूं ,तब जब सब्जी में नमक ज्यादा हो जाता है, तब जब तेज आंच में सूजी थोड़ा जल जाती है और कोई बताता नहीं हे अगली बार आंच कम रखना, तब जब कभी थककर बिना बाल गुँथे ही सो जाती हूं ,हा तब बस याद आती है उस ने खुद को बड़े जतन से संभालते हुए कहा ,पापा ने आंसू छपाते हुए पूछा मुझे याद करती हो ,बेटी सुबकते हुए बोली हा जब अपनी उलझने खुद सुलझाती हूँ तब जब छोटी सी अनबन के घंटों बाद कोई नहीं मनाता तब जब कभी अकेलेपन का डर हावी होता हे तब जब भी आँखें नम हो और कोई गले न लगाए तब जब पूरी दुनिया विपरीत हो जाये तब जब घर की लक्ष्मी कहते और उसकी जरूरते पूरी नहीं हो पाती है माँ बाप की आँखों में आंसू की धार थी मगर बेटी समझदार थी बोली पापा टेंशन मत लो ये शिकायत नहीं है बस जीवन सफर की शुरुआत है जिस तरह से आप की लाड़ली हर एग्जाम में फर्स्ट है जिंदगी के एग्जाम में भी फर्स्ट आएगी मां समझ गई थी बेटी सयानी हो गई है और पापा को अपनी लाडली पर विश्वास था वो बोले कोई बात नहीं बेटा मुझे किसी की परछाई में मत खोजना जब भी जीवन मुश्किल लगे तुरंत याद करना । पापा की बातो के संबल से उस के आंसुं मोती से चमक उठे बेटियां खुशियां तो ससुराल में बाट लेती है परन्तु अपने दुख मायके में ही बाटती हैं हक से अपने पुराने घर आती है और अपने सारे दुख दर्द और तनाव को को भूल के एक नयी ऊर्जा के साथ ससुराल जाती है
चित्र : -पिक्सबे से साभार
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 18 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया 🙏🙏
हटाएंआपने तो रूला दिया सर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप को रचना अच्छी लगी सादर आभार
हटाएंहमने तो रब को देखा नहीं पर ये नूर है ख़ुदा जमीं पर।
जवाब देंहटाएंएक एहसास है रौशनी का बेटियां तो है लम्हा ख़ुशी का।।
अति उत्तम रचना गुरुदेव
धन्यवाद शर्मा जी
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार जोशी सर
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
(17-07-2020) को
"सावन आने पर धरा, करती है श्रृंगार" (चर्चा अंक-3765) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
आभार आदरणीया मीना जी 🙏🙏
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश,नमन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शशि जी सादर आभार
जवाब देंहटाएंमार्मिक लघुकथा.पढ़ते-पढ़ते आँखें नम हो गई.
जवाब देंहटाएंसराहनीय सृजन है सर आपका .
सादर
धन्यवाद अनीता जी आप को रचना पसंद आयी आभार सादर
हटाएंसुन्दर सार्थक लघु-कथा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंहृदयस्पर्शी रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत अपनी सी।
धन्यवाद
आभार आदरणीया आप को रचना अच्छी लगी
हटाएं''बेटियां खुशियां तो ससुराल में बाट लेती है परन्तु अपने दुख मायके में ही बाटती हैं हक से अपने पुराने घर आती है और अपने सारे दुख दर्द और तनाव को को भूल के एक नयी ऊर्जा के साथ ससुराल जाती है--------''
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण बात लिखी आपने राकेश जी | सच है नारी तभी जीत पाती है जब सशक्त मायका उसके पीछे सहारा नहींअपितु मन का अवलंबन बन खड़ा होता है | सादर --
धन्यवाद आदरणीया रेणु जी आप को कथा अच्छी लगी आभर
जवाब देंहटाएंसुंदर कहानी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया अनीता जी
हटाएंमायका मायका ही होता है। उसका बहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी
हटाएंसच मायका जीवन के कई मोड़ों में याद आता है और माँ-बाप का कितना सम्बल होता है यह घर से दूर अपने बसाये घर में पता चलता है
जवाब देंहटाएंबहुत सच्ची और दिल से निकली बातें दिल पर आकर ठहरती है उतरती है
आभार कविता जी
हटाएंहृदयस्पर्शी रचना.
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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