पचास रुपए का नोट
चित्र साभार गूगल से |
काफी जद्दोजहद के बाद ऑफिस से उस को 1500 ₹ एडवांस मिले थे सारे खर्चे का हिसाब लगाने के बाद उस के पास 200₹ बचने थे जिस में उस को 1 हफ्ता निकलना था सैलरी 1या 2 तारीख में आ ही जाती है ये सोच सोच के सिर में तेज़ दर्द था घर जाने से पहले उसने दवाई की दुकान से दवा ली पैसे देने के लिए जेब में हाथ डाला तो अन्य नोटों के बीच एक खस्ता सा पचास रुपए का नोट नजर आया जो मुफलिसी के दिनों में भी उस का साथ एक दोस्त की तरह निभाता था मगर वो दोनो तरफ टेप से जुड़ा था उस ने ये नोट दुकानदार की तरफ बड़ा दिया दुकानदार दोनों तरफ से नोट देखते हुए बोला "सर ये नोट चेंज कर दीजिए"
उसने जेब से कुछ छुट्टे निकाल कर दुकानदार को दीये नोट के बारे में सोचता हुआ वह दुकान से बाहर निकल गया चलते चलते सोचा क्यों ना ये नोट हलवाई की दुकान पर चला दे हलवाई की दुकान से एक पाव जलेबी तुलवाकर उस ने नोट हलवाई को थमाया तो वहा से भी ना। अब सिर दर्द से ज्यादा पचास का नोट उस का जी का जंजाल बना हुआ था अंधेरा हुआ चला था तभी उस की नजर सड़क के दूसरे और गुमठी पर पड़ी जो अपनी जो अपनी गुमठी में मूंगफलियां सेक रहा था उस के इर्द गिर्द रोशनी कम थी सोचा उसे नोट टिकाया जा सकता है उसने मूंगफलियां खरीदी और उस का ध्यान बंटाने के लिए बोला "भैया गजक भी है क्या "
"है बाबूजी ,
उस ने नोट को पास रखी बोरी पर रख कर गजक उठाया ही था कि वह बोला रहने दो कल लेे जाऊंगा
मूंगफली लेकर वह विजयी मुस्कान के साथ वहा से सरकने वाला था कि पीछे आवाज़ लगी भैया सुबह से हम ही मिले है का फटा नोट चलाने के लिए ,उसने जेब से एक नोट निकाल के चुकता किया बड़बड़ाते हुए हिसाब लगाने लगा इस 50 ₹ को चलाने के चक्कर में 170 ₹ खर्च हो गए अब हफ्ता भर गरीबी में काटना पड़ेगा अब फिर से फटा नोट जेब में लिए हारा हुआ सा घर लौट आया रात को रोज की भांति अमूमन वह मंदिर में पांच या दस रुपए का मत्था टेकता था परन्तु उस दिन उसने पचास रुपए चढ़ाए थे उसके मन में शांति का अनुभव था
अच्छा संसमरण
जवाब देंहटाएंवाह राकेश जी, फटा हुआ नोट और भगवान...बहुत सुंंदर कहानी...सबक भी है कि हमारा खोटा भी भगवान के सामने खरा हो सकता है
जवाब देंहटाएंजी आभार
हटाएंहा हा ... होता है कई बार ऐसा ...
जवाब देंहटाएंख़राब नोट चलाने के चक्कर में जेब खर्च हो जाती है ... अच्छी कहानी ...
धन्यवाद सर
हटाएंबहुत सुंंदर कहानी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंकई बार ऐसे अनुभव आते है जब फटे नोट के चक्कर में ज्यादा खर्च हो जाता है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर फटे पचास रुपए की कहानी आख़री प्रभु ख़ुश हुए दस के एवज़ में मिले।
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद अनीता जी सादर
हटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी सादर
हटाएंबहुत ही सुन्दर मजेदार कहानी....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
आभार सुधा जी सादर
हटाएंएक प्रभु ही हैं, जिन्हें इन्सान अक्सर धोखा देता है!... बढ़िया रचना!
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