भरोसा
कांता घरों में बर्तन व सफाई का काम कर के अपना गुजारा चला रही थी, वो तो भला हो सरिता मैडम का जो पिंकी की पढ़ाई और उसकी फीस में मदद कर देती थीं, कांता बाई देर से आई तो सरिता उसे डांटते हुए बोली ये कोई समय हे आने का बर्तन और झाड़ू नहीं हुई है अभी तक.
कांता रोने लगी बोली दीदी आज काम करने नहीं आई उसका रोना देख कर देख कर सरिता का गुस्सा शांत हो गया उस ने उसे बिठा कर पूछा अब बताओगी क्या हुआ ?
कांता ने रोते हुए कहा गांव में पति का एक्सिडेंट हो गया है अस्पताल में एडमिट है और काम धंधा भी रुक गया है उनकी हालत खराब है मैं गांव जा रही हूं हफ्ते दस दिन बाद आऊंगी,यही बताने आयी हूं.सरिता ने उसे चुप कराते हुए कहा तू जा कांता, पति के ठीक होते ही आ जाना. सरिता ने किराया और दो हजार रूपए एडवांस दिए कांता जा ही रही थीं सहसा सरिता को याद आया कि कांता की एक बेटी भी हे उस ने पूछा कांता तेरी एक बेटी भी है वार्षिक परीक्षा चल रही है उसे भी लेे जा रही है क्या ? उस का साल बर्बाद हो जाएगा
न दीदी, पिंकी यहीं रहेगी उस के एक काका को बुलाया है पिंकी के साथ रहने के लिए पिंकी के बापू रिश्तेदार है फिर कुछ दिन में तो में आ जाऊंगी कांता ने जवाब दिया.
नहीं जाने क्या हुआ सरिता जोर से चीखी कांता डर गई.नहीं कांता पिंकी किसी काका के साथ अकेली नहीं रहेगी उसे मेरे पास छोड़ दो या अपने साथ लेे जाओ पर काका के भरोसे नहीं. सरिता के दिमाग कुछ अक्स घूमने लगे जिन से वो सब से ज्यादा नफरत करती थीं मगर उन अंकल पर पिताजी का अटूट भरोसा था
ये काका भरोसे करने लायक नहीं होते कांता और ये बच्चियां अपना दर्द किसी से कह नहीं पाती.इतना कहकर सरिता उन भयानक क्षणों को याद कर के सुबक उठी कांता को लगा.जैसे पिंकी के बहाने सरिता का कोई दर्द बह निकला हो ये आंसू सरिता के मानसिक जख्मों पर मरहम का काम कर रहे थे कांता कुछ बोल पाती इस से पहले ही मन ही मन निश्चय कर के सरिता जोर से बोली अब इन बच्चियों का भरोसा नहीं टूटेगा
चित्र :- पिक्स बे के सौजन्य से |
नंगे सच का स्पर्श करती मार्मिक लघुकथा!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदणीय सर
हटाएंमर्मस्पर्शी कथा राकेश जी | बछियों के दर्द के , समाज के ये ढके लिपटे सच सदैव ही आँखों से ओझल रहे हैं , पर अब इन पर से परदे हटने लगे हैं | बहुत ही सधी कथा है आपकी | शुभकामनाएं और आभार |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रेणु जी सादर आभार
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंराम मन्दिर के शिलान्यास की बधाई हो।
आप को भी शुभकामनाएं सर
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार(07-08-2020) को "राम देखै है ,राम न्याय करेगा" (चर्चा अंक-3786) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
धन्यवाद मीना जी
हटाएंवर्तमान का सच्च उजागर करती मार्मिक लघुकथा।
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद अनीता जी
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जुलाई २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
धन्यवाद स्वेता जी
हटाएंसत्य बयान करती कहानी
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरणात्मक लघु कथा ।
जवाब देंहटाएंअति उत्तम ।
सादर ।
आभार आदरणीय
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंमार्मिक लघुकथा!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गगन जी
हटाएंमर्मस्पर्शी लघुकथा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया अनुराधा जी
हटाएंहृदय स्पर्शी कथा, पर्दे के पीछे के सत्य रेखांकित करती सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया कुसम जी
हटाएंसमाज के नगे सच को उजागर करती बेहतरीन कथा ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कामिनी जी
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी
हटाएंकडवी सच्चाई व्यक्त करती लघुकथा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी
हटाएंमार्मिक और मर्म स्पर्शी कथा , आंखे खोल लेना बेहतर है, हालात सच ठीक तो नहीं
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण कथा, आदरणीय प्रणाम
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया मधुलिका जी
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