इंतजार
चित्र पिक्स बे से साभार |
कुछ नहीं बदला है तुम्हारे इंतजार में
न वो घड़ी थकी है न उसके कांटे
आज भी रखा है कॉफी का मग
तुम्हारे ओठों के निशान लिए
सूरज की तपिश भी वैसी ही है
चांद की चांदनी भी पहले सी ठंडी
बारिश भी तन मन भिगोते हुए
आँखे भी नम करती हे वैसे ही
किताबो में रखी चिट्ठियों के साथ
रखे गुलाब आज भी उतने सुर्ख हे
आज भी साथ रहती है किताबे
रात भर तुम्हारी याद बन कर
अगर कोई बदला है तो बस ये
उनींदी आखे क्या पता क्या ढूंढ़ती है
न खुद सोती है ना सोने देती है
अब तो ख्बाब भी नहीं देखने देती
अब दोस्ती हे करवटों व सलवटों से
कम से कम वक्त बेवक्त साथ तो देती हे
लौट आओ और लौटा दो मेरे वजूद को
अपनी मुस्कान से जिन्दा कर दो तुम
मेरे होने के अहसास को ........
लौट आओ कुछ नहीं बदला है तुम्हारे इंतजार में
बहुत सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंआभार सर
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जवाब देंहटाएंअति उत्तम कविता
हटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
लाजवाब सृजन
जवाब देंहटाएंVery nice post
जवाब देंहटाएंMere blog par aapka swagat hai...
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (06-07-2020) को 'मंज़िल न मिले तो न सही (चर्चा अंक 3761) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी हार्दिक आभार सादर
हटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीया मीना जी सादर
हटाएंसजल मनुहार के साथ इंतजार की पीड़ा की मार्मिक अभिव्यक्ति राकेश जी। 👌👌शुभकामनायें और आभार 💐💐🙏💐💐
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया रेणु जी
हटाएंहृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ...असहज माहौल है मन में व्यकुलता सहज ही पनप जाती है.सुंदर लेखन हेतु बधाई आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद अनीता जी सादर
हटाएंइंतज़ार के पाली आसानी से नहीं बीतते
जवाब देंहटाएंवो समय रुक जाता है ... सब कुछ वैसा ही रहता है जैसे था ... ठीक मिलन के लम्बे जैसा ...
अच्छी रचना है राकेश जी ...
धन्यवाद दिगंबर सर
हटाएंमर्मस्पर्शी सृजन सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
धन्यवाद आदरणीया Sweta Sinha जी
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 16 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय सर सादर🙏🙏
हटाएंबेहतरीन
हटाएंआभार आदरणीया अनीता जी सादर
हटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदणीय हर्ष महाजन सर
हटाएंये रचना भी प्यारी है और इसकी हेडिंग भी बहुत सटीक है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय जी सादर
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