माता पिता
चित्र गूगल के साभार से |
पर्याप्त समय था लॉक डाउन के कारण हर बात पर सोचने के लिए इन्वेस्टमेंट, रिश्ते नाते, सुबह सुबह यूट्यूब पर इन्वेस्टमेंट के फंडे देखते हुए लगा मेरे माता पिता कुछ ज्यादा ही चिंता करते है, भावुक है,मुझे समझ नहीं पाते है, उनका मिस मैनेजमेंट है ना सेविंग्स की ,ना हैल्थ का ध्यान रखा पत्नी मॉर्डन है मां समझ नहीं पाती है दोनों सठिया गए हैं शायद " दिमाग सोच रहा था".
शुरुआत से पढ़ाई में अच्छा होने के कारण पिताजी ने मुझे शहर के इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाया स्कूल तो प्रतिष्ठ था मगर फीस पिता जी के आर्थिक हैसियत के बाहर थीं में उन की उम्मीदों पर खरा उतरा आगे उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति और प्लेसमेंट भी। कृति भी यही मिली थी पहले जॉब से साथ थे लिव इन में रहने के कारण परिवार नाराज थे मगर हमे कहा परवाह थी अहंकार था जल्द सफलता मिलने का,अंश पेट में था तब शादी की ,घरवालों ने बस आशीर्वाद की खानापूर्ति की थीं रीति रिवाज पता नहीं हुए के नहीं । मां पिताजी बस फोन या व्हाट्स एप्प से टच में थे समयचक्र अपनी चाल चल रहा था पैसा तो भरपूर था समय की व्यस्तता के कारण अंश पर ध्यान नहीं दे पा रहे थे कृति दुबारा प्रेग्नेंट होने के कारण लीव पर थीं सारा लोड मुझ पर ही था अंश को संभालना कठिन था अकेले रहने के कारण जिद्दी हो गया था कृति को अचानक से हॉस्पिटल लेे जाना पड़ा जल्दबाजी में अंश भी स्लिप हो गया था उस के हाथ में फ्रैक्चर ,उस के भी सारे काम मुझे करने थे.कॉर्पोरेट में अगर टिकना है तो आप को अपने बॉस से संबंध मधुर रखने होते है जो गट्स अपने में नहीं थे वो तो भला हो करोना का अचानक इतनी छुट्टी एक साथ मिल गई मगर सारे सर्वेंट की छुट्टी कर गई
कृति को अभी 1 वीक और था ड्यू डेट का और कोराना के कारण हॉस्पिटल में भी नहीं रख सकते थे अड़ोसी और पड़ोसी भी सोशल दूरी बनाए हुए थे टेंशन काफी थीं थकान के कारण हल्का बुखार था रात को 3 पेग से ज्यादा हो गई थी और में बुद्धिजीवी बन चुका था ख्याल चल रहे थे दिल में ,माँ के पास पता नहीं ऐसा कोन सा यंत्र था जो दूर से ही मेरे आवाज़ के उतार चढ़ाव को समझ लेती थी और मेरी शारीरिक और मानसिक बीमारियों का ताप बिना थर्मामीटर के समझ लेती ,ऐसा लगता है माँ ने बहुत सारी डिग्रीया छुपा के रखी है कभी कभी लगता है वो साइंटिस्ट है कभी कभी लगता है के वो वैद्य या डॉक्टर है जिसके काढ़े या घरेलू नुस्खे मुझे हर मर्ज में अक्सीर होते हे कभी कभी लगता है के मनोवैज्ञानिक है जिस से डिस्कशन के बाद दिमाग की उलझन सुलझ जाती है कभी कभी लगता है माँ आईआईएम से पासआउट होगी कठिन से कठिन समस्या की केस स्टडी मिनटों में सुलझा देती है ऐसा नहीं है के पिता ने डिग्रियां छुपा के नहीं रखी है लगता है के वो पहलवान हे दिन भर हम दोनों भाई बहन को गोदी में लटकाए घूमते है कभी कभी लगता है सेना में कर्नल हे तभी इतना डिसिप्लिन बना पाते है कभी कभी लगता है के कुबेर है हर बार जेब में एक 100 की पत्ती डाल देते है कभी कभी वो रॉ के एजेंट लगते है कहा क्या कर रहा हूं क्या करने वाला हूं सब पता चल जाता है कभी कभी लगता है वो हल्क या सिंघम है जो अपने बच्चो की रक्षा के लिए विश्व से लड़ने को तैयार है
सुबह सुबह कृति की आवाज़ से नींद खुली देखो बाहर कोई हे अधखुली आंखों से देखा माँ पिताजी खड़े है पिता जी के चिल्लाने से मेरी खुमारी टूटी जा सामान ले के आ , सामान अंदर रख के गेट लगाया जब तक पिताजी ने जेम्स बॉन्ड के माफिक घर का सारा हाल लेे लिया मां नहा के कृति के पास आ गई और बोली चिंता ना कर बेटी जापे का सारा सामान लाई हूं अंश भी खुश था
लगा सर से एकदम से लोड हट गया आंसू छिपाते हुए बोला पापा आप नहा लो में नाश्ते का अरेंजमेंट करता हूं शाम को माँ के हाथ का खाना मिलना था सोचा चलो फिर से बुद्धिजीवी बना जाए 3 पेग के साथ पिताजी की आवाज़ आई मेरा भी बना दे एक पटियाला हाथ पैर फूल गए मगर में जानता था के ये डिटेक्टिव भी है और टैंकर भी है नीचे डायनिंग टेबल पर अंश सिम्पल आलू जीरा और दाल राइस स्वाद लेे के खा रहा है दादी यूं आर ए वंडरफुल शेफ..हाल में शिव और पार्वती जी की बड़ी सी फोटो फ्रेम में मां पिता जी का अक्स दिख रहा था दिल बोला ईश्वर तू महान है मेरे माँ पिताजी सर्व शक्तिमान है मेरे फूट फूट कर आंसू निकलने लगे जा कर मां पिता जी की गोदी में छिप कर सुबकने लगा कृति मेरा ऐसा रूप पहली बार देख रही थी अंश हैरान था और में बुद्धिजीवी से फिर से बच्चा बन गया था मेरा अहंकार आंसू के साथ गलते जा रहा था।.
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में वार 07 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वार= मंगलवार
हटाएंजी बहुत बहुत आभार सर मेरी रचना को शामिल करने के लिए🙏🙏🙏
हटाएंसुन्दर और मार्मिक लघु कथा।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय सर
हटाएंजीवन के उतार चढाव का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है माता-पिता अपने बच्चों की ख़ामोशी से सूख दुःख का आभास कर लेते है.मर्मस्पर्शी कहानी ...
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया अनीता जी
हटाएंमाता-पिता की महत्ता युवाओं को विपरीत परिस्थितियों में समझ आती है। थोड़ा पढ़-लिखकर आधुनिक जीवन शैली आत्मसात कर भावात्मक रिश्तों से दूर हो जाना स्वाभाविक है किंतु जन्मदाता अपनी संतान से
जवाब देंहटाएंविमुख नहीं हो पाते।
भावपूर्ण सुंदर संदेशात्मक कहानी सर।
सादर।
सादर आभार श्वेता जी🙏🙏
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (08-07-2020) को "सयानी सियासत" (चर्चा अंक-3756) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार सर साधुवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण कथा या संस्मरण राकेश जी ��������पढ़कर आँखें नम हो गई। माता पिता पर जो लिखा जाए कम हैं। भाव विहल रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें����
जवाब देंहटाएंआदरणीया रेणु जी धन्यवाद .. ये संस्मरण ही है जिस मैने एक कथा के रूप में लिखा हे 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंजी राकेश जी मैं समझ गयी थी, पर बहुत शानदार है👌👌
हटाएंधन्यवाद सादर
हटाएंजीवन की कठिन राह पर मां पिता कितना बड़ा संबल
जवाब देंहटाएंहै ।
बहुत सुंदर कथा।
धन्यवाद आदरणीया सादर
हटाएंजीवन के प्रवाह की उंच नीच माँ बाप सहज ही समझ जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंउनके सामने बच्चे बने रहना हमेशा अच्छा लगता है ... अच्छी संवेदनशील कहानी ...
आभार दिगंबर सर सादर
हटाएंबहुत खूबसूरत भावों से भरी कहानी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया
हटाएंये तो सच है कि भगवान है, पर धरती पे रूप माँ बाप का उस विधाता की पहचान है।
जवाब देंहटाएं💐💐
सादर आभार
हटाएंउतार चढ़ाव जीवन के ही अंग हैं. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी लघुकथा ,माता पिता ,माता पिता ही रहते है ,उनकी ममता कभी नहीं घटती है
जवाब देंहटाएंआस लगाकर बालक पोसा
कंचन दूध पिलाया
माता पिता का दोष नहीं है
कर्म लिखा फल पाया ।
माता-पिता की अच्छाइयों को बखान करना नामुमकिन है। दिल को छुती बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआभार ज्योति जी
हटाएंहृदयस्पर्शी रचना.
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