कोराना का डर
ऑफिस से आते जाते समय ये गुमटियां अक्सर हमारी ठिलवाई का अड्डा होती है चाय, सुट्टे के साथ साथ ठिलवाई और दोपहर का न्यूज पेपर,हम मध्यमवर्गी आज भी देश और दुनिया की खबरों के लिए नाई की दुकान या चाय की गुमटी को अपना स्रोत मानते है कुछ रेहड़ी और ठेले वाले भी 5 बजे तक अपना मजमा यहां जमा लेते है जिस से यहां अच्छी खासी भीड़ जमा हो जाती है
देश में कोरोना वायरस को लेकर अभी भी काफी डर औरअसुरक्षा का माहौल है।शिक्षण संस्थानों के अलावा जिम,माल भी सरकार ने बंद करा दिया थे जो अब धीरे धीरे फिर से खुल रहे है। में व्यवसाय के लाभ हानि का गुणा भाग करते हुए चला जा रहा था ,रास्ते में अब रौनक भी नहीं दिख रही थी जो सुबह शाम और लंच टाइम में इन छोटे दुकानदारों के गुमठियों में हुआ करती थीं फैक्टरियों में मजदूरों की छटनी वैसे ही हों चुकी थी, ख़ैर कोराना के शुरुआती 3 माह, दीवाली और अब चुनाव के बाद मार्केट तो डॉउन था शुरुआती संवेदना के बाद अब नगर निगम और पुलिस ने मास्क के नाम पर वसूली का नया धंधा बना लिया था
अपना स्कूटर पार्किंग में लगा के बाहर आया तो देखा गुमठी बंद थी आस पास पुलिस और नगर निगम की जीप थी में मास्क लगा कर तमाशा देख रहा था
अब भीड़-भाड़ वाली जगहों से नगर निगम और पुलिस वाले खोमचे वाले, रेहड़ी वाले व तमाम फुटकर दुकानदारों को हटा रहे थे।भोलू अभी मार्केट में अपनी रेहड़ी लेकर आया ही था कि पुलिस वालों ने डंडा फटकाते उससे कहा-जल्दी से सनेटाइजर और मास्क रख अपने ठेले पर वरना 500 ₹ जुर्माना ”ये रेहड़ी, ठेले वाले दिन भर की हाड़ तोड़ मेहनत के बाद 200 से 300 ₹ कमाते थे जिस में 50 ₹ पुलिस के 50 ₹ नगर निगम के, तब तक तो चला रहे थे मगर अब ना ग्राहकी है ऊपर से 500 ₹ फाइन दुकानदारों को सामन समेटते देख वह भी बुझे मन से घर की और चल पड़ा। धीरे-धीरे भारी कदमों से घर पहुंचा। उसे देख उसकी घरवाली ने अचरज से पूछा-क्या हुआ बड़ी जल्दी वापस आ गए।
भोलू उदासी से बोला-कोरोना की वजह से नगर निगम के बाबू भीड़-भाड़ वाले इलाकों में मास्क और सनिटाइजर ना होने पर ग्राहक व दुकानदार पर 500 ₹ फाइन कर रही है, माखन,छोटे,संतोष ,सब अपने रेहड़ियों और खोमचे बंद कर आए तो।हम भी आ गए ।
“शाम को हम और हमारे बच्चे क्या खायेंगे ? 'आज दिन में तो पुराने पार्षद जी पूरी सब्जी बटवा रहे थे तो उस से गुज़ारा हो गया "
“हमें तो रोज कुआं खोदना और पानी पीना है। राम जाने अब क्या होगा, हम छोटे दुकान रेहड़ी वालों का।लंबी उबांसी लेते हुए भोलू बोला।
भूखों मरने से तो अच्छा है कोरोना से मर जाते।” रोते हुए पत्नी बोली।
अब दोनों उदास चिंता में डूबे बैठे थे। तभी संतोष चिल्लाते हुए बोला चल भोलू पार्षद जी ने बुलाया हैं उन की धर्म पत्नी की आरक्षित सीट से चुनाव लडने की चर्चा हैं अब कुछ दिन खाने की और कोराना की दवाई की कोई कमी नहीं रहेगी भोलू ऊपर वाले को धन्यवाद देते हुए बोला "अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम दास मलूका कह गए सब के दाता राम"
वहां कोरोना से सावधानी के बैनर लगे थे मगर वहां बस चुनावी चर्चा थीं वोट का गणित था नेता, प्रशासन और जनता तीनो गला तर कर रहे थेआखिर अल्कोहल जो था उस में,कोरीना मास्क और सोशल डिस्टेंस की धज्जियां उड़ रही थी और कोराना का डर पढ़े लिखे मध्यम वर्गीय व्यवसायी या नौकरीपेशा तक सिमट के रह गया था.क्यों के मध्यमवर्गी ही समाज के, सरकार के हर नियम मानता है वो कोई आंदोलन नहीं कर पाता अपनी नौकरी के आगे।
चित्र - गूगल से साभार |
बहुत सही।
जवाब देंहटाएंमध्यवर्गीय ही तो मुद्दा नहीं बनता।
कोरोना का भय असल में गरीब व मध्यवर्गीय परिवार को ज्यादा लगा। बीमारी का नहीं वरन इसकी वजह से जाने वाली नोकरी का भय।
नई रचना- समानता
धन्यवाद् सर
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-12-20) को "कुहरा पसरा आज चमन में" (चर्चा अंक 3916) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
धन्यवाद् कामिनी जी
हटाएंBahut shandar 👏👏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद्
हटाएंमध्यमवर्गी ही समाज के, सरकार के हर नियम मानता है वो कोई आंदोलन नहीं कर पाता अपनी नौकरी के आगे।
जवाब देंहटाएं–कड़वा पर सत्य
आभार आदरणीया विभा जी
हटाएंसत्य है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय
हटाएंआसमान से जब बिजली गिरती है तो वह भी गरीब का ही घर देखती है
जवाब देंहटाएंहर आपदा का पहला निशाना गरीब का घर होता है
धन्यवाद आदरणीया
हटाएंकड़वी सच्चाई व्यक्त करती रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया
हटाएंचिंतनीय एवं सार्थक विषय उठाया है ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया
हटाएंसामयिक व चिंतनीय, सुन्दर सृजन, प्रभावशाली लेखन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय
हटाएंशानदार 👏🏻👏🏻👏🏻
जवाब देंहटाएंकोराना का डर पढ़े लिखे मध्यम वर्गीय व्यवसायी या नौकरीपेशा तक सिमट के रह गया था.क्यों के मध्यमवर्गी ही समाज के, सरकार के हर नियम मानता है वो कोई आंदोलन नहीं कर पाता अपनी नौकरी के आगे।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सटीक...बहुत ही सुन्दर ....
लाजवाब सृजन।
धन्यवाद आदरणीया
हटाएंकटु यथार्थ उजागर करता चिन्तनपरक सृजन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मनोज जी
हटाएंसार्थक चर्चा है ... और ये मुद्दा ज़रूर रहना चाहिए ...
जवाब देंहटाएंआभार दिगंबर जी आप का स्नेह बना रहे
हटाएंWow this is fantastic article. I love it and I have also bookmark this page to read again and again. Also check bewafa quotes
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,
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