कोरोना स्टोरीज ,नुक्कड़।

कोरोना स्टोरीज ,नुक्कड़ । लघुकथा 

साहस

कोराना महामारी के कारण लॉक डाउन क्या हुआ  नुक्कड़ वीरान हो गया ,कालू गैंग के तो मजे हो गए सारी अर्थव्यवस्था गिर रही हैं मगर इन की हालात सुधरने का टाइम आ गया था नशेड़ी और छोटे चोर  
कालू :-यार ये सही टाइम है कमाने का
रशीद:-अबे भूल गया क्या पिछले बार टी आई साहब ने कितनी सुटाई की थी
कालू:-यार अभी कौन पकड़ेगा सब कोराना में लगे है सब सुनसान हे नुक्कड़ के लाला कि शॉप पर हाथ मारते है पैसा नहीं मिला तो भी साले ने पान मसाला और सिगरेट खूब स्टॉक की है ब्लैक में बेचने को
पूरन :- हा बे  5 का विमल 20 में दिया और 10 की सिगरेट 25 में, लूट लो  बिना जीएस टी की हे पुलिस रिपोर्ट भी नहीं करेगा
इधर मेडिकल स्टाफ की भी इमरजेंसी चालू सारा नर्सिंग स्टाफ 2 दो शिफ्ट कर रहा है हॉस्पिटल की बस ने रीमा को नई बस्ती के नुक्कड़ पर छोड़ दिया सुबह के 4 am वैसे तो वह कई बार नाइट में घर आयी है मगरअभी सुनसान था नाआईटी कंपनी वाले, ना चाय वाले बस किसी हॉरर मूवी जैसा सुनसान फिर भी रास्ता देखा हुआ था तो ज़्यादा डर नहीं था अचानक जोर से आवाज आई वह सहम गई दुकान का शटर कुछ खुला-सा था बाहर खड़े कालू ने उसे रोक लिया रीमा सकपका गई उसे नुक्कड़ से घर तक 250 मीटर की दूरी भी ज़्यादा लग रही थी रशीद और पूरन भी बाहर आ गए
कालू :- आज का दिन तो कमाल है ब्रहम मुहूर्त में पैसा और लड़की
रशीद:-  सही हे बाप
पूरन :- मजे हो गए भाई
रीमा का चेहरा पीला पड़ गया ,मन के हारे हार मन के जीते जीत सोचते  हुए हिम्मत बटोर के बोली 
रीमा कौन हो तुम मुझे क्यों रोका हे
तीनो एक साथ :- 😆😆😆हा  हा हा  जोर से हॅसे
कालू :-कोई भी हो हम बस थोड़ा टाइमपास करेंगे फिर चले। जाएंगे
रीमा:-अच्छा पहले कौन आएगा मिलो मुझ से वैसे भी में अकेली हु आज कल तो सब दूर हैं
रशीद  क्या हुआ डर नहीं लग रहा है
रीमा:-किस बात का डर  वह लड़को की द्विअर्थी बातो को भी नज़रअंदाज कर रही थी
रशीद:-अपने को तो चालू आइटम। लगती हे
कालू अपने को तो ये धंधे वाली लगती हे
रीमा:-क्यों सोच में पड़ गए क्या
पूरन:-चल बे मजे लेते हे और सामान उठा के निकले
रीमा जोर से खांसी और चिल्लाई आओ सालो धंधे वाली नहीं कोरोना वाली आओ मुझे कोराना है और उन की तरफ दौड़ी तीनो की हवा टाईट नो दो ग्यारह हो गए रीमा तेज़ी से कदम बढ़ाती घर पहुँची उस ने सोच लिया था अब कैब से जाएगी और दिन की शिफ्ट ; साहस ने रीमा को मुसीबत से निकाल  दिया

मौका 

तड़के नगर निगम की गाड़ी सनेटाइजेशन के लिए नुक्कड़ पर
सत्तू:-ये देख साला कचरा भी ऐसे ही फेक़ जाते हे
मुंह में गुटका दबाए हुए हरी बोला:-अबे नहीं बे बैग नए हे माजरा कुछ और हे या तो दुकान वाला भूल गया है या चोर
सत्तू दुकान के पास आ के बोला शटर का लॉक टूटा हे
हरी मोका ताड़ते हुए बोला:-अबे ये सिगरेट और पान मसाला के बैग हे जल्दी गाड़ी में डाल इन को चांस पर डांस करने का भाई 
हरि 100 डायल करते हुए साहब नई बस्ती में नुक्कड़ पर लाला कि शॉप का ताला टूटा है
इधर बस्ती में लोग निशुल्क राशन वितरण की लाइन में लगे बात कर रहे थे नुक्कड़ की शॉप वाला तो अंधेर मचाये हुए था यार सत्तू और हरी के पास विमल 15 की औरफ्लैक एक्सेल (सिगरेट) 20 में मिल रही है सत्तू और हरी खुश थे कोरोना में कमाई का मौका मिला 

डर

उधर नुक्कड़ दुकान वाले सेठ जी दुखी मन से खुश थे लक्ष्मी माता को अगरबत्ती लगाते  हुए मन में खोया पाया का हिसाब ,के कहीं बैग पकड़ा जाते तो माल से ज़्यादा जीएसटी लगता धन्धें की सारी पोल खुल जाती बदनामी अलग 
अगर उन्हें सनेटाइज़र और दारू का स्टॉक भी मिल जाता उन्होंने पुलिस को बयान दिया बस ताला टूटा था माल कुछ चोरी नहीं हुआ। सेठ जी को डर नहीं था प्रशासन का 
चित्र साभार गूगल और पिक्सबैं 

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साहस,मौका,डर,लघुकथा 


20 टिप्पणियाँ

आपके सुझाव एवम् प्रतिक्रिया का स्वागत है

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
    (26-06-2020) को
    "सागर में से भर कर निर्मल जल को लाये हैं।" (चर्चा अंक-3744)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

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  2. बहुत सुन्दर नाटक .....

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  3. वाह सर नुक्कड़ नाटक जैसी विधायें लिखते नहीं आजकल लोग बहुत सुंदर और यथार्थ का आईना, सार्थक संदेश से युक्त लिखा है आपने।
    सादर।

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  4. जी सर कमेंट अप्रूवल लगाने की आवश्यकता नहीं है शायद।
    विनम्र सुझाव🙏
    सादर।

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  5. बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति

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  6. वाह बहुत ही बढ़िया ,सही बात है आजकल नाटक लिखना मानो बंद हो गया है,तभी देखकर अच्छा लगा ,बधाई हो

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  7. अच्छा लगा ये नाटक ... आज कल काम हाई काम हो रहा है इस विधा पर ...
    सार्थक अभिव्यक्ति है आपकी ...

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  8. बहुत ही शानदार नुक्कड़ नाटक वह भी समसामयिक कोरोना पर ...।
    मन के हारे हार है मन के जीते जीत...वाह!!!
    सुन्दर , सार्थक।

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  9. शानदार नाटक राकेश जी | आज शाम को पढ़ा था | इस विधा को निखारिये | ये आज की जरूरत है |सस्नेह शुभकामनाएं|

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    1. जी रेणु जी प्रयास जारी है बस आप जैसे गुनिजन की संगत और स्नेह बना रहे 🙏🙏🙏

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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