असमंजस

असमंजस  

joyful girl
चित्र अविका खरे की पेंटिंग से साभार

बिजली विभाग में बाबूजी की तनख्वाह कम व काम ज्यादा था साथ में बड़की के लिए रिश्ता ढूंढ़ना ऐसे में फूफा जी व पुश्तैनी एटलस साइकिल ही उन के सहयोगी थे आज घर में सुबह से भागदौड़ मची थीं सर्वेंट क्वार्टर के ठीक पीछे स्वाद के लिए फेमस गोवर्द्धन स्वीट्स से बाबूजी ने जलेबी,समोसे,पाव भर मिठाई नमकीन और बिस्कुट पैक करवा लिए बिल देते हुए सेठजी बोले सुनो परिवार देख लेओ मोड़ी को जचे तो हा करियो जिंदगी भर को सवाल है बाबूजी पैसे देते हुए बोले भाई साहब का करे लोग मोड़ी को रंग देखत हे गुन नहीं कछु समझ नहीं पड़े का करे सेठजी बोले कछु ना कहो हम समझ रहे हे तुम मोड़ी के बाप हो,बात चुभी जरूर मगर आत्मीयता हो जाती है रोज मिलने वालो में इन कस्बों में

बाबूजी असमंजस  में थे मंगलसूत्र,कान के कुंडल ,बिछिया, हाथ के कड़ा ,कपड़े ,दहेज सेट और 1बोरी शक्कर की नुकती सब मिला के 2 से 3 लाख का खर्चा जमीन 1.5 लाख की बिके बड़की ने 20 हजार जोड़े हे कछु कन्यादान योजना से मिल जेहे  बाकी बचे ब्याज पर ले लेहे मनो बाके बाद ब्याज देहे बड़की की सैलरी भी ना मिले  मन ही मन सोचते जा रहे थे इत्ती बार कोशिश कर लई मनो बात ने बनी जा बार रिश्ता  हे हा भई तो प्रसाद चढ़ये खेड़ापति पे।लड़के की चाहत में बड़की के बाद २ मोड़ी और हो गई थी छोटू सब से छोटा ।बड़की दीदी प्राइवेट स्कूल में टीचर थीं  दिखने में सावली सलोनी हमेशा चेहरे पर मुस्कान , गाड़ी की आवाज़ सुन कर बाबूजी चिल्लाए छोटू की मां मेहमान आ गए है पूर्व पार्षद वर्मा जी,उनकी मिसेज ,बेटी रिंकी और लाखन अंदर आए वर्मा जी ने पैसा तो कमाए मगर बेटे के चारित्र में चार चाँद लगे होने के कारण रिश्ते नहीं मिल रहे थे उम्र भी ४०  इस लिए रिश्तेदारी और कॉलोनी में दिखाने को बहु चाहिए थी महज खानापूर्ति
फूफा जी जो हर बार बड़ी जुगाड से रिश्ता ढूंढ के लाते है एक तो एहसान और हर बार 500 ₹ की नोट गला तर करने के लिए ,नाश्ते की टेबल लगी जब तक मिसेज पचौरी ने आंखो से घर का मुयाना शुरू कर दिया उनकी बेटी मंझली से बात कर रही थी छोटू और छुटकी का ध्यान समोसे और जलेबी पर था बड़की दीदी तैयार हो जाने ही वाली थी के मां ने बहुत सारी क्रीम और पाउडर चहरे पर पोत दिए था ओठ भी लिपस्टिक से लाल कर दिए बड़की गुस्से से तमतमा उठी स्कूल पढ़ाने जाती हूं तब काला कर के भेजती है डर से  के  कहीं नैन मैट्टका ना कर ले इन सब में उस का स्वाभिमान कुचल जाता था जब से 18 में लगी तब से 2 साल में 17 बार रिश्ता आया रिजेक्ट हुए वजह क्या थी बाबूजी की आवाज़ आई अरे भाई चाय लेे आओऔर श्यामा बिटिया को भी बुला लो श्यामा ने  सब को चाय दी लाखन उसे घुरे जा रहा था मिसेज पचौरी की पारखी नज़रे श्यामा के चेहरे के भाव नहीं बल्कि सर से पांव तक जेवर ढूंढ रही थी लेनदेन की बात के बाद पचौरी जी बोले लाखन तुम दोई भी बात कर लो घर छोटा था बाजू में फूफा जी के घर में दोनों बात कर रहे थे लाखन की नज़रो के कारन वह असहज महसूस कर रही थी वह बोला रानी बना के रखें  मनो शादी के बाद बार बार  मायके ने आने  जाने और ये २ पांच हज़ार की नौकरी तो हमरे नौकर भी न करे वर्मा ख़ानदान से रिश्ता आओ हे तो लड्डू तो फूटे रहे हुए तुमरे मन में  श्यामा थोड़ा सा हंसी और बोली २ पांच हज़ार की रिश्वत के कारण पेपर में नाम आया था वर्मा ख़ानदान का और हमें पता हे के तुम रानी बनाओगे या नौकरानी और ये २ पांच हज़ार की नौकरी से तुम जैसों गिद्ध सी नज़रो से बचे रहते हे ,और परिवार पलते है लाखन का चेहरा उतर गया था वर्मा जी बोलते हुए निकले लड़की का रंग रूप सही नहीं हे एक बार फिर ना
गोवर्द्धन स्वीट्स में आज सेठानी भी आई है उनकी दीवार में कान लगाने की जन्मजात आदत के कारण श्यामा और लाखन का वार्तालाप सुन बांके बिहारी जी
 की तस्वीर देखते हुए उन के मन में ख्याल आया के श्यामा तुलसी का प्रसाद तो इन को भी चढ़ता हे अपने बेटे श्याम के लिए उन को श्यामा जच गई इन सब के बीच मां की नजर में दोषी क्रीम पॉवडर थे ,फूफा जी खुश थे अगले रिश्ते पर फिर ५००, बेचारे बाबूजी तनाव में थे उन को वजह समझ में न आयी स्वाभिमानी श्यामा मन ही मन खुश थी के असमंजस ख़त्म कुछ साल और बाबूजी की मदद कर पायेगी जब तक मंझली समझदार ना हो जाए छोटू की लॉटरी लग गई 2 समोसे उठा के दोनों को आधा आधा मुंह में भर के जुगाली करता हुआ बोला गोवर्द्धन स्वीट्स वाले सेठ जी आए हे ।

लघुकथा 

32 टिप्पणियाँ

आपके सुझाव एवम् प्रतिक्रिया का स्वागत है

  1. लेख पढ़ कर अच्छा लगा
    भाषा बहुत रोचक लगी
    अच्छी लघु कथा

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  2. धन्यवाद आदरणीया ये भाषा खड़ी बोली का ही रूप हे जो जबलपुर महकौशल क्षेत्र में बोली जाती है

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    1. जी , तभी कहा मैंने। मेरे इक मित्र भी है जबलपुर से उनकी नानी ऐसे बोलती हैं जो हमे बहुत अच्छा लगता हैं। फोन पर ही सुन पाते थे तो बहुत स्वाद आता उनकी भाषा का :)

      सदर नमन

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    2. जी हां ज़ोया जी अपनी जबान में अपनापन और स्वाद रहता है

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  3. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
    (19-06-2020) को
    "पल-पल रंग बदल रहा, चीन चल रहा चाल" (चर्चा अंक-3737)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

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  4. यथार्थ,समय का सुंदर लघुकथा।

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  5. खड़ी बोली में लिखी हुई कहानी को पढ़कर मजा आ गया ,बहुत अच्छी कहानी ,ये हमारे यहाँ भी बोली जाती है

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  6. लड़की चाहे जितनी गुणी व सुन्दर हो उसका विवाह सदैव एक समस्या रही है।

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  7. सुंदर लघुकथा। कई बार घर वाले लड़की का विवाह करते वक्त ऐसे ही घबराए रहते हैं और जल्दबाजी में गलत सलत विवाह कर देते हैं। श्यामा ने समझ से काम लिया।


    कहानी में पूर्णविराम और उद्धरण चिन्ह("") का प्रयोग होगा तो पठनीयता और बढ़ जाएगी। अभी इनके आभाव में थोड़ा पढ़ने में परेशानी होती है। उम्मीद है इसे अन्यथा नहीं लेंगे।

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    1. धन्यवाद जी आदरणीय आगे से इस बात का विशेष ध्न्यान रखा जायेगा आप के अमूल्य समय के लिए आभार

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  8. ये हमारे समाज की समस्या है शायद ... लड़की का विवाह आज भी एक समस्या ही लगता है ... घबराए हुए रहते अहिं सब ... अच्छी कहानी ...

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