प्रकृति और मानव
प्रकृति
वृक्षों नदियों पहाड़ों और जानवरो का सम्मान
इको सिस्टम को बचाने का भारतीय विधान
अब समझ आती हैं, सब भूली बिसरी बातें
दादा दादी के किस्सों की अनमोल सौगातें
रिमझिम रिमझिम बारिश का यू बरसना,
जैसे प्रकृति का नव सृजन संगीत,छंद रचना
हरे लहलाते पलाश आम सगोन नीम के पेड़ ,
वो अमराई,स्वर्ण सी पकी फसलें खेतों की मेड़
प्रकृति ईश्वर थी मानव को देती खुशियों के वर।
मानव
मानव ने की कोशिश प्रकृति को गुलाम बनाने की
माल बिल्डिंग लोहे कंक्रीटों के जाल बिछाने की
तोड़े पहाड़ काटे वृक्ष बांध बना नदियों का रास्ता मोड़ा
मानव ने रचा बिना भावनाओ का कृत्रिम सुंदर मायाजाल
खलिहान उज़डे गांव उज़डे जल सूखा वंसुधरा हुई वीरान
तब समझा मानव धरा हे जननी प्रकृति,करती समाधान
जल वृक्ष, जीव ,फसल पर्वत औषधि हैं उस के वरदान
संतुलन सदा ही प्रकृति बनाती करती नष्ट मानव अभिमान
दोनों रचनाएँ एक दूसरी को पूर्णता देती और अपने आप में पूर्णता लिए ..बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंआप की अमुल्य प्रतिक्रिया के लिए सादर धन्यवाद
हटाएंबहुत प्रभावी रचनाएं ...
जवाब देंहटाएंजीवन की सचाई से जुड़ी ... जो पहले के लोग़ कहते थे ठीक ही कहते थे ...
आप की अमुल्य प्रतिक्रिया के लिए सादर धन्यवाद
हटाएंसंतुलन सदा ही प्रकृति बनाती करती नष्ट मानव अभिमान
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक सटीक रचना..
वाह!!!
आप की अमुल्य प्रतिक्रिया के लिए सादर धन्यवाद
हटाएंGood poetry
जवाब देंहटाएंप्रिय मित्र आपकी यह रचना अति उत्तम है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र सादर
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