प्रकृति और मानव

प्रकृति  और मानव

tree

प्रकृति

वृक्षों नदियों पहाड़ों और जानवरो का सम्मान
इको सिस्टम को बचाने का भारतीय विधान 
अब समझ आती हैं, सब भूली बिसरी बातें 
दादा दादी के किस्सों की अनमोल सौगातें  
रिमझिम रिमझिम बारिश का यू  बरसना,
जैसे प्रकृति का नव सृजन संगीत,छंद रचना 
हरे लहलाते पलाश आम सगोन नीम के पेड़ ,
वो अमराई,स्वर्ण सी पकी फसलें खेतों की मेड़
प्रकृति ईश्वर थी मानव को देती खुशियों के वर।

मानव

मानव ने की कोशिश प्रकृति को गुलाम बनाने की
माल बिल्डिंग लोहे कंक्रीटों के जाल बिछाने की 
तोड़े पहाड़ काटे वृक्ष बांध बना नदियों का रास्ता मोड़ा
मानव ने रचा बिना भावनाओ का कृत्रिम सुंदर मायाजाल 
खलिहान उज़डे  गांव उज़डे जल सूखा वंसुधरा हुई वीरान 
तब समझा मानव धरा हे जननी प्रकृति,करती समाधान
जल वृक्ष, जीव ,फसल पर्वत औषधि हैं उस के वरदान

संतुलन सदा ही प्रकृति बनाती करती नष्ट मानव अभिमान

9 टिप्पणियाँ

आपके सुझाव एवम् प्रतिक्रिया का स्वागत है

  1. दोनों रचनाएँ एक दूसरी को पूर्णता देती और अपने आप में पूर्णता लिए ..बहुत सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप की अमुल्य प्रतिक्रिया के लिए सादर धन्यवाद

      हटाएं
  2. बहुत प्रभावी रचनाएं ...
    जीवन की सचाई से जुड़ी ... जो पहले के लोग़ कहते थे ठीक ही कहते थे ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप की अमुल्य प्रतिक्रिया के लिए सादर धन्यवाद

      हटाएं
  3. संतुलन सदा ही प्रकृति बनाती करती नष्ट मानव अभिमान
    बहुत सुन्दर सार्थक सटीक रचना..
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप की अमुल्य प्रतिक्रिया के लिए सादर धन्यवाद

      हटाएं
  4. प्रिय मित्र आपकी यह रचना अति उत्तम है।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आपके सुझाव एवम् प्रतिक्रिया का स्वागत है

Post a Comment

और नया पुराने