भारतीय आहार ,आहार और रोगों से बचाव सात्विक, राजसिक और तामसिक आहार
कोराना वायरस के चलते लगातार 21दिन का लॉकडाउन चल रहा है इस के चलते सारे परिवार 21 दिन के लिए घरों में है और अपनी संस्कृति खानपान को फिर से जान रहे है एक दूसरे से नमस्ते कर रहे है शाकाहार अपना रहे है संयुक्त परिवार में रह रहे अपने बच्चो को कुछ सीखा रहे है माता पिता से सीख रहे है अब विदेशियों द्वारा भी कहा जा रहा है कि भारतीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य देशों की तुलना में अधिक है भारतीयों का खानपान भी गहन अध्यन का विषय है भारतीय मनीषियों ने इस का वर्णन आयुर्वेद, योगशास्त्र, और गीता में स्वयं कृष्ण के द्वारा किया गया है यहां पर 6 ऋतुओं,और विविध सभ्यता के कारण अलग अलग आहार पद्धतियां हे लेकिन मुख्यत 3 ही आहार पद्धति है
“ जैसा खाओगे अन्न , वैसा रहेगा मन ”
“ हम जो खाते हैं हम वैसे ही बन जाते हैं”
भोजन पर विस्तारपूर्वक चर्चा करने से पहले हमें यह समझ लेना होगा कि आयुर्वेद में भोजन का कार्य मात्र शरीर को ऊर्जा पहुंचाना ही नहीं है। अपितु साथ साथ हमारे शरीर के हारमोंस को भी प्रभावित करता है। जिनसे हमारे भाव और विचार जन्म लेते हैं।आहार हमारे शरीर और अंतर्मन पर सघन प्रभाव डालता है आहार का सीधा मतलब है आपका खानपान, और यह हमारे जीवित रहने का मूलभूत आधार है। हमारे वेदों में आहार को ही जीवन कहा गया है। देखा जाए तो उचित और संयमित आहार दवा का कार्य करता है जिन लोगों का अपनी जिव्हा पर संयम नहीं होता है वे ही आगे चलकर रोग से पीड़ित होते है अपनी प्रकृति के अनुसार लाभकारी, उचित मात्रा में और ठीक तरह से भोजन करने वाला व्यक्ति ही स्वस्थ रहता है। लेकिन आप जो कुछ भी खाते हैं वो सिर्फ तभी आपके स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होगा जब आप खाने को सिर्फ स्वाद के लिए नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिए खायेंगे। योग में भी हमारे शरीर की प्रकृति के अनुसार व्यक्तिगत आहार का प्रावधान है।एक हीं भोज्य पदार्थ किसी के लिए अनुकूल हो सकता है और किसी के लिए नुकसानदायक हो सकता है, यह व्यक्ति व्यक्ति की प्रकृति पर निर्भर करता है।आयुर्वेद में आहार को अपने चरित्र एवं प्रभाव के अनुसार सात्विक, राजसिक तामसिक रूपों में वर्गीकृत किया गया है. सात्विक, राजसिक और तामसिक यह केवल खाद्य पदार्थों के ही गुण नहीं है अपितु जीवन पद्धति व उसे दिशा देने का मार्ग भी हैं
(1)
सात्विक
आहार
(2) रजसिक आहार
(3) तामसिक आहार
सात्विक आहार
सात्विक भोजन वह जो प्राकृतिक पदार्थो से बना हो जो सर्वगुणसंपन्न हो पाचक हो एवम् शरीर को शुद्ध करे योग व आयुर्वेदाचार्यो के अनुसार सात्विक भोजन को सबसे अच्छा और शुद्ध माना गया है. मन की एकाग्रता रखने वालों का यह प्रिय आहार है। इसे योगी,एवम् आध्यात्मिक लोगो के लिए सर्वोत्तम माना गया है. यह शरीर को पोषण और मानसिक मजबूती देता है ऐसा भोजन करने से कार्य करने की क्षमता का विकास होता है. सात्विक भोजन सदा ही ताज़ा पका हुआ, सादा, रसीला, शीघ्र पचने वाला, पोषक, चिकना, मीठा एवं स्वादिष्ट होता है| उसे सात्विक भोजन कहा जाता है। यह शाकाहारी तो होता ही है साथ ही अत्यंत सादा और साधारण प्रकार का आहार होता है, जिसे प्राकृतिक तरीके से उत्पादित किया जाता है। तेल और मसाले भी अगर प्राकृतिक तरीके से प्राप्त किए गए हों तो उन्हें भी सात्विक की श्रेणी में रखा जा सकता है। ताजे फल, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अनाज गाय का दूध, घी, पके हुए ताजे फल, बादाम, खजूर, सभी अंकुरित अन्न व दालें, टमाटर, परवल, तोरई, लोकी जैसी सब्जियां, पत्तेदार साग सात्विक मानी गयीं हैं. घर में प्रयोग किये जाने वाले मसाले जैसे हल्दी, अदरक, इलाइची, धनिया, सौंफ और दालचीनी सात्विक होते हैं.सात्विक भोजन करने से शान्ति, संयम, पवित्रता जैसे गुण विकसित होते हैं
राजसिक आहार
जैसा की इस का शाब्दिक अर्थ हे राजा या राजनीतिक व्यवहार से जुड़े लोगो का आहार जिन्हें अधिक ऊर्जा एवम् मानसिक सक्रियता की जरूरत होती हैराजसिक आहार भी ताजा लेकिन पाचन में भारी होता है राजसिक भोजन का गुण है की यह तुंरत पकाया गया और पोषक होता है. इसमें सात्विक भोजन की अपेक्षा अधिक तेल व मसाले होते हैं. ये आहार शरीर और मस्तिष्क को कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं इस भोजन का सेवन शरीर में स्फूर्ति और उत्तेजना प्रदान करता है खान-पान राजसिक आहार उन लोगों के लिए लाभदायक होता है जो जीवन में व्यवहारिकता और आक्रामकता में सामंजस्य बनाना चाहते हैं जैसे व्यापारी, राजनेता एवं खिलाड़ी अधिकारी वर्ग राजसिक है राजसिक आहार सामान्यतः कड़वा, खट्टा, नमकीन, तेज़,चरपरा और सूखा होता है.अति स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ राजसिक हैं Iइसमें मसालेदार सब्जियां व्यंजन मिठाईयां आती हैं. चाय, कॉफी और तले हुए खाद्य पदार्थ पान राजसिक भोजन के अर्न्तगत आते हैं.वहीँ राजसिक भोजन करने से जूनून और खुशी जैसे गुणों में बढ़ोतरी होती है
तामसिक आहार
तामसिक आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ आते हैं जो ताजा न हों, जिनमे जीवन शेष न रह रह गया हो , इस में मांसाहार मुख्य है जो शरीर और मन को सुस्त करते हैंI इनके अत्यधिक सेवन से जड़ता, भ्रम और भटकाव महसूस होता मिर्च-मसालेदार व्यंजन, ज्यादा तले हुए पदार्थ प्याज लहसुन, तंबाकू, मांस, शराब, जरूरत से ज्यादा पकी हुई चीजें, खमीर उठी हुई खाद्य सामग्री तामसिक आहार की श्रेणी में आते हैं. प्रोसेस्ड वनस्पति घी और रसायनों का प्रयोग हुआ हो जैसे पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर, ब्रेड, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक, तंदूरी रोटी, रुमाली रोटी, नान, बेकरी उत्पाद, तम्बाकू, डिब्बाबंद व फ्रोज़न फ़ूड,केक, अंडे, जैम, कैचप, नूडल्स, चिप्स समेत सभी तले हुए पदार्थ, बासी या पुन: गर्म किया गया भोजन, तेल या अत्यधिक भोजन और वसा का अत्यधिक सेवन, तेलयुक्त और अत्यधिक मीठा भोजनI, मछली और अन्य सी-फ़ूड, परंपरागत रूप से तामसिक माने जाते रहे हैं. जड़ स्वाभाव के लोगों का यह पसंदीदा भोजन है ऐसा भोजन करने से अशांति, तनाव आदि महसूस होने लगते हैं। इसके अलावा यह आहार क्रोध और वासना को बढ़ावा देता है जो अनुचित है
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