हिन्दू कैलेंडर, चैत्र नवरात्रि,गुड़ी पड़वा नवसंवत्सर‘
हर साल चैत्र महीने के पहले दिन गुड़ी पड़वा मनाया जाता है. यानी कि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन नए साल के रूप में गुड़ी पड़वा मनाया जाता है. गुड़ी का अर्थ होता है ध्वज और पड़वा का अर्थ होता है प्रतिपदा। गुड़ी का अर्थ है विजय पताका इसी दिन से नया संवत्सर भी शुरु होता है। अत: इस तिथि को 'नव संवत्सर' भी कहते हैं। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि का आरंभ भी होता इस दिन नवरात्र घटस्थापन, ध्वजारोहण, संवत्सर का पूजन किया जाता है.इस दिन घर में मां दुर्गा की आराधना होती है । भारतीयों की एक मान्यता यह भी है कि ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना आरंभ की। भारतीय नववर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और यह समय खगोलीय और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय एवम् शास्त्रीय गणना के अनुसार माना जाता है। आज भी यही कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर पूर्णत उचित बैठती है यह भारतीय कालगणना परंपरा का गौरवशाली प्रतीक है। हमारी वैवभशाली परंपरा प्रकृति के खगोलशास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार ही
पूर्णतया विज्ञान एवम्
मान्यताएं
(1)पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता यह भी है कि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन ही आदिशक्ति का प्राकट्य हुआ था
(1)कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने वानर बाली का वध किया था बाली के अत्याचार से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुड़ी) फहराए। इसीलिए इस दिन को गुड़ी पड़वा नाम दिया गया।
(2)कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधवारें, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है।
(3)इसी दिन से नया संवत्सर शुंरू होता है। अत इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं। चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं अपना जीवन विस्तार करती है पुष्प और फलों से आच्छादित होती है। शुक्ल प्रतिपदा चन्द्र मास का प्रथम दिन माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को जीवनरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। चन्द्रमा को औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना गया है।
(4)सनातन धर्म में चैत्र प्रतिपदा से ही नववर्ष का प्रारंभ माना जाता है। कहते हैं कि इसी दिन गणितज्ञ भास्कराचार्य ने तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण पर आधारित पंचांग की रचना भी की थी।
(5)शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है।
कहा जाता है कि शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूँक दिए और इस सेना की मदद से शक्तिशाली शत्रुओं को पराजित किया। इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ।
कुछ अन्य मान्यताएं ये भी है इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक के रूप में मनाया गया। इसी दिन महाराज युधिष्टिर का भी राज्याभिषेक हुआ
मुख्यत मराठी समाज गुड़ी पड़वा मानता है गुड़ी पड़वा विशेष रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा के मौके पर दिन की शुरुआत पारंपरिक तेल स्नान से की जाती है. इसके बाद घर के मंदिर में पूजा की जाती है और फिर नीम के पत्तों का सेवन किया जाता है. नीम के पत्तों को खाना विशेष रूप से लाभकारी और पुण्यकारी माना जाता है. महाराष्ट्र में इस दिन हिन्दू अपने घरों पर तोरण द्वार बनाते हैं. साथ ही घर के आगे एक गुड़ी यानी कि झंडा रखा जाता है. एक बर्तन पर स्वास्तिक बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेट कर रखा जाता है. घरों को फूलों से सजाया जाता है और सुंदर रंगोली बनाई जाती है. इस दिन मराठी महिलाएं नौ गज लंबी नौवारी साड़ी (Nauvari Saree) पहनकर पूजा-अर्चना करती हैं. गुड़ी पड़वा पर घर-घर में श्रीखंड, पूरन पोली और खीर जैसे कई मीठे पकवान बनाए जाने की परंपरा है.
उत्तर भारत इसी दिन से लगातार नौ दिनों तक चैत्र नवरात्रि का व्रत रखा जाता हैं. उत्तर भारत में भी चैत्र नवरात्रि की शुरुआत के साथ ही हिन्दू नव वर्ष का जश्न मनाया जाता है.
आंध्र प्रदेश में घरों में ‘पच्चड़ी/प्रसादम‘ तीर्थ के रूप में बांटा जाता है। कहा जाता है कि इसका निराहार सेवन करने से मानव निरोगी बना रहता है। चर्म रोग भी दूर होता है। इस पेय में मिली वस्तुएं स्वादिष्ट होने के साथ-साथ आरोग्यप्रद होती हैं। यूँ तो आजकल आम बाजार में मौसम से पहले ही आ जाता है, किन्तु आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में इसी दिन से खाया जाता है।
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में सारे घरों को आम के पेड़ की पत्तियों के बंदनवार से सजाया जाता है।जो सुखद जीवन की अभिलाषा समृद्धि, व अच्छी फसल के भी परिचायक हैं।
नौ दिन तक मनाया जाने वाला यह त्यौहार दुर्गापूजा के साथ-साथ, रामनवमी को राम और सीता के विवाह के साथ सम्पन्न होता है।आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धाíमक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है।
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