अंतर्द्वंद

 अंतर्द्वंद 


मेरे दो मन है 


एक मन बहुत सरल सीधा और सुंदर जो सहजता चुनता है प्रेम गीत रचता है 

दूसरा बहुत चालक स्वार्थ चुनता है अपने आस-पास पास मकड़ी सा जाल बुनता है 

एक मन अपने में मगन जीवन स्पंदन सुनता है प्रकृति का सृजन सुनता है 

दूसरा मन अपने प्रपंच रचता है खुद को समझाने रोज नया छल रचता है 

उधेड़बुन में लगा हुआ जब दूसरा मन जब पहले मन पर हावी होने लगता है 

प्रलोभन,मक्कारी, नफरत जैसे अपने तरकश के सारे तीर चलाने लगता है
पहला मन विचलित सा अपने आप को निशस्त्र  पाने लगाता है 

दूसरा मन पहले मन को कमजोर जान फिर से छल का जोर लगाता है 

मगर इन्हीं क्षणों में पहला मन हार जीत से परे  मौन अस्त्र चलाता है 

बस उन मौन क्षणों में अंतर्द्वंद थम जाता और दोनों मन 

का मिलन हो जाता है 

image courtesy google



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