गर्मी की छुट्टियों में रिश्ते संवरते थे

 गर्मी की छुट्टियों में रिश्ते संवरते थे

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इंतजार रहता था गर्मियों की छुट्टियों का सयुंक्त परिवार होते थे सब छुट्टियों में अक्सर अपने पैतृक गांव आते थे
अगर आप का जन्म 80-90 के दशक में हुआ हैं तो ये सब बातें आपकी यादों में भी शामिल होंगी।
अप्रैल के महीने में परीक्षाएं समाप्त होकर अप्रैल अंत तक परिणाम भी आ जाता था और फिर होती थी मई ,जून की छुट्टी मतलब पूरे २ माह पूरा परिवार एक साथ इक्ट्ठा होता था,एक दूसरे के लिए पर्याप्त समय होता था आंटी अंकल या कजिन की जगह हर  रिश्ते का पूरा नाम और प्यार होता था बुआ,चाची ताई,मौसी मामी, चाचा ताऊ फूफा मामा दादा दादी नाना नानी मोसेरे चचेरे ममेरे भाई बहन होते थे माँ पिताजी ,दोनों  के नोकरी में होने के कारण 1माह दादा दादी के गाँव और 1 माह नाना नानी के यहाँ जाना पहले से ही तय होता था

हम भाई बहनों के झुंड का हुडदंग इस बात का सबूत हुआ करता था कि गर्मी की छुट्टियांआ चुकी हैं सुबह पता नहीं कैसे सब के साथ 5 से 6 बजे नींद खुल जाती थीं आज का तो पता नहीं पर हमारे पेस्ट में नमक होता था दादी नमक,हल्दी और खाने के तेल को मिला कर मंजन बना देती थी जो नीम की दातून के साथ दांत साफ करने में बड़ा मजा आता था छुट्टियों में एक साथ 40 -45 लोगों का खाना बनाने में देरी के कारण नाश्ते में पूरी भाजी ,दूध- रोटी, आचार -परांठे , गुलगुले, खाये  नहीं सुते जाते थे

बगीचे में से कच्चे आमों पर निशाना लगा-लगाकर तोड़ना ,दिन में भागते दौडते केरी,इमली,बेर खाना ये भी किसी बड़ी खुशी से कम नहीं था। बैलगाड़ी से नदी में नहाने जाते थे तो घर आने का नाम ही नही लेते थे |कभी कभी घर के आंगन के हैंडपंप को कोई एक चलाता और सब बारी बारी से उसमे नहाते थे
खाने के ठाठ थे जो आज कोई सेलिब्रिटी शेफ या डाइटीशियन 5 स्टार  होटल्स में हजारों रुपये ले के  खिलाते है दादी रोटी चूल्हे की आग में सेंकती थी जो बड़ी सोंधी सोंधी लगती थी ।ज्वार की रोटी और आलू  टमाटर की तरी वाली सब्जी,दाल चावल ,पुदीने आम की चटनी मन तृप्त कर जाते थे तरबूज ककड़ी आम का पना,बेल का शरबत ,शिकंजी शुद्ध छाछ दही आम का रस ,सब का जायका अब भी जुबान पर है तपते सूरज की गर्मी को भी शांत कर देते थे,
छत या आँगन पर सब का एक साथ सोते हुए तारे देखते हुए बाते करना अच्छा लगता था,बड़े चारपाई पर सोते थे दादाजी तो तख्त पर सोते थे,इन छुट्टियों में घर के जटिल से जटिल मसले,विवाद सुलझ जाते थे कुछ अदब के कारण और कुछ आपसी समझ के कारण.

दादा दादी की कहानियों में मनोविज्ञान छुपा हुआ होता था जो परिवार को जोड़े हुआ था स्वत परिवार की नई जनरेशन में संस्कार के बीज़ का रोपण हो जाता था ये  छुट्टियों परिवार को जोड़ने के लिए ब्रिज का काम करती  थी  इन छुट्टियों में रिश्ते संवरते थे परिवार जुड़ते थे 

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4 टिप्पणियाँ

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  1. सही कहा आपने रिश्ते जुड़ते संवरते थे छुट्टियों में पहले...अब कौन किसी का आना पसंद करता है सब एकाकी जीने के आदि हो गए।

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  2. सच कहा है ... बहुत से बहाने होते थे उस वक्त ... जोड़ने के कारण होते थे ... जो अब बहुत कम हैं ...

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