हर चेहरे पर नकाब या मुखौटा होता है या तो लोगो से बचने के लिए या लोगो को ठगने के लिए.मेरे विचार से अधिकतर लोग दोहरे चरित्र वाले होते है,एक जो वो होते है और दूसरा जो वो दिखना चाहते है कोई भी सभी के लिये एक सा चरित्र नहीं अपना सकता।
मुखौटे
अनन्या और रजत खुश थे दोनों आज अपने शादी और भविष्य को ले कर निर्णय लेने वाले थे
अनन्या -: रजत,"मुझे समझ नहीं आ रहा है कि क्या करना चाहिए क्या नही"
रजत -: "देखो अनन्या ! जिंदगी में कभी ना कभी हम ऐसे दोराहे पर आ ही जाते है जहां हमें एक रास्ता चुनना होता है
अनन्या -:"लेकिन रजत मेरे मां और पापा, उन्होंने मेरी हर छोटी बड़ी ख्वाहिश हमेशा पूरी की है में इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती हूं
नहीं में उन की मर्जी के विरूद्ध जा कर शादी नहीं कर सकती हूं"..
रजत-: "तो फिर ठीक है जाओ मेरे साथ क्यों समय खराब कर रही हो अपने मम्मी पापा की मर्जी से हर काम करो"
अनन्या -: रजत में उलझन में हूं डिसीजन लेने में मेरी मदद करो मुझे सही गलत का फर्क बताओ
रजत -: देखो अनन्या ये मुमकिन नहीं है कि सब को एक साथ खुश रखा जाए अगर हम दोनों प्यार करते है तो हम दोनों को शादी कर लेना चाहिए इस में सब की सहमति हो जरूरी नहीं इस में हमारी गलती नहीं हे मेरा तो यही मानना है बाकी तुम सोचो
रजत ने बात अनन्या की तरफ मोड़ दी थी उसे पता था अनन्या निर्णय लेने में हमेशा दूसरों की सलाह पर निर्भर रहती हैं इस लंबी होती बहस में अगर किसी का नुकसान हो रहा था वो टेबल पर रखी आइसक्रीम का जो पिघल रही थी और अपना स्वाद खोती जा रही थी,पहले आइसक्रीम तो खत्म कर लो और कूल हो जाओ अनन्या ने रजत से कहा दोनों आइसक्रीम खा ही रहे थे तभी अनन्या ने अपना सेल फोन निकला अरे ये तो प्रीति का कॉल है "प्रीति रजत की छोटी बहन थी"
कुछ मिनट तक बात करने के बाद अनन्या चेहरे पर गंभीर भाव लिए लौटी
अनन्या -: यार बहुत बड़ी प्रॉब्लम हो गई है
रजत -: क्या हो गया
अनन्या-: अरे यार
रजत-:जल्दी बोलो क्या बात है
अनन्या-: यार वो अक्षत है ना तुम्हारा पड़ोस वाला लड़का
रजत-: हा क्या हुआ उस को
अनन्या-: उसे कुछ नहीं हुआ है पर
रजत-: पर क्या जल्दी बोलो यार
अनन्या -: अरे वो और प्रीति शादी करने जा रहे है कोर्ट बुलाया है मुझे विटनेस बनने के लिए
शब्द सुनकर रजत स्तब्ध सा रह गया उसकी आंखे गुस्से से लाल होती जा रही थी उसके व्यवहार और चेहरे से क्रोध झलक रहा था मुंह से गालियां निकलने लगी
रजत -: साली.. प्रीति खानदान की इज्जत मिट्ठी में मिलाने में तुली है और वो कमिने अक्षत को तो में छोडूंगा नहीं कांपते हाथों से रजत अपनें दोस्तो को कॉल कर रहा था सभी से हथियार लेे कर कोर्ट पहुंचने का बोल रहा था लग रहा था कुछ गलत होने वाला है
अनन्या-: रजत ये सही नहीं है
रजत -: चुप कर तुझ जैसी त्रियाचरित्र वाली लड़की से मुझ को प्रीति को दूर ही रखना चाहिए था सब तूने ही सिखाया होगा उसे।
अनन्या -: रजत ये क्या बोल रहे हो
रजत -: एक शब्द भी मत बोलना जुबान काट लूंगा
रजत बोल तो गया था मगर अगले पल उसे अहसास हुआ अनन्या के सामने उस ने अपनी छवि बनाने के लिए कितनी मेहनत की है वो सोच रहा था अपनी गलती को कैसे सुधारा जाए .कुछ क्षण तक बिलकुल पिन ड्रॉप साइलेंस...गहन शांति
अनन्या -: " रजत प्रीति का कोई फोन नहीं आया मुझे मेरे सवालों का जबाव चाहिए था जो मुझे मिल चुका है"
अनन्या का प्यार का भ्रम और रजत के सपने टूट चुके थे चेहरों से मुखौटे हट चुके थे
चित्र :- गूगल के सौजन्य से |
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 25-09-2020) को "मत कहो, आकाश में कुहरा घना है" (चर्चा अंक-3835) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
धन्यवाद मीना जी
हटाएंमेरे ब्लॉग "मंथन" पर से आपकी प्रतिक्रिया त्रुटि वश delete हो गई उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ . सादर आभार सर!
हटाएंबहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर सादर
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ सितंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
धन्यवाद स्वेता जी
हटाएंबहुत अच्छी कहानी। बिना जाँचे परखे संबंधों में ना बँधने का संदेश देती हुई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी
हटाएंकटु यतार्थ व्यक्त करती रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी
हटाएंसच ! मुखौटा कब तक ? उतरना ही था ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अमृता जी
हटाएं–हिन्दी लेखन में वैसे आंग्ल शब्द जिनके हिन्दी ज्यादा सुंदर लग सकते हैं, खटकते हैं.. बचने की कोशिश हमें करनी चाहिए
जवाब देंहटाएं–साहित्य में सामान्य अशोभनीय शब्द भी अरुचिकर लगे।
जी आदरणीया विभा जी आप की अमूल्य सलाह के लिए धन्यवाद आगे लेखन में ध्यान रखूंगा आप मार्गदर्शन करते रहिए
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मनोज जी
हटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गगन जी
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी
हटाएंमुखोटे के बल पर कब तक किसी को बेवकूफ बनाया जाता...मुखौटा आखिर उतर ही गया..।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
धन्यवाद सुधा जी
हटाएंबहुत सुन्दर लघु कथा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विकास जी
हटाएंBahut acha blog
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
हटाएंयही तो विरोधाभास है ,हम करे तो सही किसी और ने की तो गलत। रजत वही सब कुछ अनन्या को करने को कह रहा था जो उसे खुद की बहन का किया पसंद नहीं था,उसने एक पल को भी नहीं सोचा कि -अनन्या भी किसी की बहन और बेटी है,समाज की यही दशा है ,सुंदर सीख देती कहानी,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कामिनी जी
हटाएंचित भी मेरी पट भी मेरी!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंGood story
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबिलकुल सही बात है लिखी है आपने,मुखौटा लगाकर लोग निकलते हैं किसी को भी पहचाना मुश्किल है ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मधुलिका जी
हटाएंBahut sahi ✌✌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई
हटाएंमुखौटे पर आपकी यह पोस्ट बड़े सहज ढंग से मनुष्य के दोहरेपन को उजागर करती है।
जवाब देंहटाएंइस महत्वपूर्ण रोचक पोस्ट के लिए बधाई!
धन्यवाद आदरणीया डॉ.शरद सिंह जी
हटाएंसादर
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