स्त्री वसुंधरा होती है
जब मुझे स्त्री नहीं देह समझ मेरा वजूद आंका जाता है
जब स्त्रियों के हँसने से उन के चरित्र का आंकलन होता हैं
इज्जत के नाम पर दो गज घूंघट डालने को कहा जाता हे
शरीर पर झांकती निगाहो के साथ ही मनचलों के भद्दे ताने
और जहा उन्हें कल सबक सिखा देने की बात कही जाती है
स्त्रियों को समाज तोड़ नहीं पाता तो करता है उनका चरित्र हनन
जब तुम खोज रहे होते हो उनकी आंखो में आंसू पीड़ा, दुख
वो दृढ़ संकल्प तोड़ देती है तुम्हारे बनाए सारे प्रतिमानों को
आंसुओ के नमक के साथ उन का डर भी बह जाता है
मुक्त होती है बंदिशों ,वर्जनाओं से वे स्वच्छंद होती है
बहती है नदी की तरह,ओंस की मानिंद गिरती है पत्त्तो पर
रचती है कविता ,देखती है सपने करती है निर्माण नीड़ का
करती है प्रेम उतनी गहराई से जितना तुम कभी नहीं कर पाए
वे वन लताओं की तरह अनुशासन या क़ायदे नहीं मानती है
वो होती है वसुंधरा,वो होती है सरिता, वो होती है प्रकृति
वो होती हे स्त्री स्वयं और प्रकृति के जीवन की अभिलाषा
तुम्हे धता बता कर खुल कर हंसती है वो जीवंत होती है
लेकिन क्या पितृसत्तात्मक समाज मैं स्त्रियां स्वच्छंद होती है ?
इस जग में सब होना सरल है लेकिन स्त्री होना कहां सहज है
चित्र - पिक्सेल के सौजन्य से |
बेहतरीन रचना आदरणीय।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया अनुराधा जी सादर
हटाएंबहुत सुन्दर और मार्मिक।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय शास्त्री जी
हटाएं"इस जग में सब होना सरल है लेकिन स्त्री होना कहां सहज है"बिलकुल सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन ,सादर नमन
धन्यवाद कामिनी जी सादर आभार
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 11-09-2020) को "मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ " (चर्चा अंक-3821) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार आदरणीया मीना जी
हटाएंसहज नहीं है स्त्री होना ...
जवाब देंहटाएंमन के भाव संवेदनशील होना .... हर दर्द में सिसकना कहाँ आसान होता है ...
सुन्दर भाव ...
आभार दिगम्बर जी
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआभार जोशी सर
हटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी सादर
हटाएंसुंदर प्रस्तुति ! शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंसही कहा सहज नहीं है स्त्री होना....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भाव ।
आभार आदरणीया सुधा जी
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुदर सृजन
बधाई
आभार आदरणीय ज्योति खरे सर सादर
हटाएंइस जग में सब होना सरल है लेकिन स्त्री होना कहां सहज है।बिल्कुल सही कहा आपने। बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी सादर
हटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सिद्धार्थ जी
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